चतुर नारद ब्यूरो:
माननीय उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप व शासन के दबाव में आखिरकार ऋषिकेश कैंपस में श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्राध्यापकों की वरिष्ठता क्रम सूची जारी कर दी है। वरिष्ठता क्रम का पालन करने हुए विवि प्रशासन ने ऋषिकेश कैंपस के तीनों संकायाध्यक्षों को हटाकर वरिष्ठतम प्राध्यापकों को संकायाध्यक्षों का दायित्व सौंप दिया है। इसी के साथ पिछले साढ़े तीन वर्षों से नियुक्ति में वरिष्ठता क्रम की अनदेखी को लेकर चल रहा विवाद थमता नजर आ रहा है।
मगर, सवाल उठता है कि आखिर विवि प्रशासन ने संकायाध्यक्षों व विभागाध्यक्षों की नियुक्ति में वरिष्ठता क्रम की अनदेखी क्यों की। ऐसे क्या कारण थे कि वरिष्ठता क्रम को लागू करने के दबाव से बचने के लिए अब तक वरिष्ठता क्रम का निर्धारण तक नहीं किया गया, जिससे वरिष्ठतम प्राध्यापक उपेक्षित महसूस करते रहे हैं।
प्रो.सिंह, प्रो.सती व प्रो.श्रीवास्तव को मिला दायित्व
विवि के कुलसचिव दिनेश चंद्रा की ओर से बीती सात अगस्त को अलग-अलग आदेश जारी किए गए, जिसमें कहा है कि विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों का वरिष्ठता क्रम का निर्धारण कर दिया गया है, जिसके आधार पर विवि कुलपति के अनुमोदन से ऋषिकेश परिसर में कला संकाय में प्रो.प्रशांत कुमार सिंह, विज्ञान संकाय में प्रो. शांति प्रसाद सती व वाणिज्य संकाय में प्रो. विजय प्रकाश श्रीवास्तव को संकायाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाता है। नव नियुक्त संकायाध्यक्षों को तत्काल प्रभाव से कार्यभार ग्रहण करने को कहा है। यह दायित्व अधिकतम तीन वर्ष या सेवानिवृत्ति, जो भी पहले हो लागू होगा। बता दें कि अब तक विज्ञान संकाय में प्रो. गुलशन कुमार ढींगरा, कला संकाय में प्रो. दिनेश चंद्र गोस्वामी व वाणिज्य में कंचनलता सिन्हा संकायाध्यक्ष थे।
परिसर निदेशक 22वें स्थान पर, कई चर्चाएं शुरू
विवि प्रशासन की ओर से जारी वरिष्ठता क्रम के अनुसार, ऋषिकेश कैंपस के निदेशक प्रो. महावीर सिंह रावत वरिष्ठता क्रम के अनुसार 22वें स्थान पर हैं। जबकि, कैंपस में उनसे वरिष्ठ कई प्राध्यापक सेवारत हैं। विवि प्रशासन की ओर से संकायाध्यक्षों में वरिष्ठता क्रम लागू करने के बाद अब विभागाध्यक्षों में यह नियम लागू करने की तैयारी है।


वहीं, प्राध्यापकों में निदेशक के पद को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं शुरू होती नजर आ रही हैं। हालांकि, विवि से जुड़े जानकारों का कहना है कि ऋषिकेश कैंपस की स्थापना के समय निदेशक का पद सृजित किया गया था, विवि अधिनियम में निदेशक पद की नियुक्ति के बारे में कोई स्पष्ट नियम का उल्लेख नहीं है। पद सृजित होने के समय से इस पद पर विवि कुलपति की अनुकंपा से नियुक्ति की परंपरा चली आ रही हैं।
